Better-off households benefit twice as much from electricity subsidies than the poorest in Jharkhand, new study shows
Reforms could free up INR 306 crore while making the system more equitable, researchers say
Ranchi, October 1—Better-off households in Jharkhand receive more than twice the share of government electricity subsidies collected by poor households, as revealed in a survey of over 900 households released today by the International Institute for Sustainable Development (IISD) and the Initiative for Sustainable Energy Policy (ISEP).
In both rural and urban areas, the richest two-fifths of households received at least 60% of electricity subsidies, while the poorest two-fifths received only 25%.
The statewide survey could represent a larger trend in India, where residential electricity subsidies are skewed toward non-poor households.
“Energy access is vital for development, and subsidies are provided so that electricity is affordable. But our research shows that it’s the poorest who are receiving the smallest benefits,” says study co-author Shruti Sharma of IISD. “This doesn’t make sense—there’s an opportunity to improve equity here.”
In FY2019, India’s subsidies for electricity consumption amounted to at least INR 110,391 crore (USD 15.6 billion). According to the report, How to Target Residential Electricity Subsidies in India: Step 2. Evaluating Policy Options in the State of Jharkhand, electricity subsidies in Jharkhand vary between INR 1 and INR 4.25 per kWh, depending on the type of household and amount of energy used—but every kWh consumed receives some amount of government support. Since wealthier households can afford to consume more, they capture a larger share of the benefits.
“According to this model, those consuming more than 800 kWh per month can receive up to four times more government support than those who use below 50 kWh,” says Shruti Sharma.
Researchers note that the unfair distribution of energy subsidies is a pervasive problem internationally, and, since many other Indian state governments have tariff and subsidy structures similar to Jharkhand, this issue is likely widespread. The experts highlight that the lack of good data on targeting electricity subsidies is a major knowledge gap across the country. To make support for energy access more fair for poor households, researchers say, the government must fill that gap.
To improve the system, they recommend that state electricity departments in India should rationalize subsidies for rich households and target government support to poor households. This approach could even allow support for the poorest to be increased, the study indicates.
The report provides specific recommendations for governments based on the Jharkhand study.
In the short term, the researchers recommend a highly cautious approach, given the impact of the COVID-19 crisis on citizens: removing the subsidy only for households consuming more than 300 kWh of electricity per month. Once the economy begins to recover, the report says, governments should progressively reduce subsidies for blocks between 50 kWh and 200 kWh per month and exclude households that do not hold poverty ration cards.
With these reforms, the Jharkhand electricity distribution company (DISCOM) could free up INR 306 crore (USD 44 million). Savings could be redirected to improve electricity supply, support poor households consuming less than 50kWh per month, or assist with recovery from COVID-19.
For other states in India, the report recommends finding context-specific solutions with similar analysis of who benefits most from electricity subsidies and by testing different targeting strategies. Experts say this would allow states to improve targeting of subsidies without compromising energy access and affordability. They should also work together with state government agencies that maintain registries of the poor, researchers suggest, to make sure energy access policies align with accurate data on household wealth.
“People across India have been hit hard by the economic shock of COVID-19. It is more pressing than ever to ask: are the right people receiving government support?” says Christopher Beaton, the project lead at IISD. “And could we do a better job at focusing support on the people who really need help the most?”
Note for the editors: The measurement of poverty in Jharkhand is based on a deprivation index; according to that, in FY 2016, 46.5% of the population was poor. Based on this poverty rate and monthly expenditure data of surveyed households, the lowest two quintiles capture the majority of the population that is defined as poor by state definitions.
सर्वाधिक गरीब परिवारों के मुकाबले बिजली सब्सिडी का दोगुने से ज्यादा का फायदा ले रहे हैं खुशहाल लोग – अध्ययन
शोधकर्ताओं ने कहा- सुधारात्मक कदम उठाए जाएं तो बचेंगे 306 करोड़ रुपये और तंत्र भी ज्यादा समानतापूर्ण बनेगा।
1 अक्टूबर 2020 : झारखंड में राज्य सरकार द्वारा गरीब परिवारों को दी जा रही बिजली सब्सिडी का दोगुने से ज्यादा फायदा संपन्न परिवारों की झोली में जा रहा है। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईआईएसडी) और इनिशिएटिव फॉर सस्टेनेबल एनर्जी पॉलिसी (आईएसईपी) द्वारा आज जारी किए गए सर्वे में यह तथ्य सामने आया है
करीब 900 परिवारों पर किए गए इस सर्वे के मुताबिक शहरी और ग्रामीण दोनों ही इलाकों में बिजली पर दी जाने वाली सब्सिडी में से कम से कम 60% हिस्सा अमीरों (रिचेस्ट टू फिफ्थ) के पास पहुंच रहा है वहीं सिर्फ 25% भाग गरीबों (पुअरेस्ट टू फिफ्थ) के पास जा रहा है।
झारखंड में किए गए इस सर्वे से पूरे भारत की बड़ी तस्वीर का अंदाजा लगाया जा सकता है, जहां घरेलू बिजली पर दी जाने वाली सब्सिडी उन परिवारों तक पहुंच रही है जो गरीब नहीं हैं।
इस अध्ययन की सह लेखिका और आईआईएसडी से जुड़ी श्रुति शर्मा ने कहा ‘‘विकास के लिए हर किसी को बिजली की उपलब्धता जरूरी है और सभी लोग बिजली खरीद सकें, इसके लिए सब्सिडी दी जाती है, लेकिन हमारा अध्ययन यह जाहिर करता है कि सबसे गरीब परिवार को सबसे कम फायदा मिल रहा है। ऐसी सब्सिडी का कोई फायदा नहीं। इस मामले में समानता लाने के लिए व्यवस्था को बेहतर बनाने की पूरी गुंजाइश है।’’
वित्तीय वर्ष 2019 में भारत में कम से कम 110391 करोड़ रुपए (15 अरब 60 करोड़ डॉलर) बिजली पर सब्सिडी के रूप में दिए गए। 'हाउ टू टारगेट रेजिडेंशियल इलेक्ट्रिसिटी सब्सिडीज इन इंडिया : स्टेप टू. इवेलुएटिंग पॉलिसी ऑप्शंस इन द स्टेट ऑफ झारखंड' शीर्षक वाली इस रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में बिजली पर दी जाने वाली सब्सिडी प्रति किलोवाट 1 रुपए से लेकर 4 रुपये 25 पैसे के बीच है। यह इस पर निर्भर करता है कि घर में कितनी बिजली का इस्तेमाल किया जा रहा है। मगर खर्च किए जाने वाले प्रत्येक किलोवाट में कुछ धनराशि सरकारी सहयोग के तौर पर शामिल होती है क्योंकि खुशहाल परिवार ज्यादा बिजली का इस्तेमाल करने में सक्षम होते हैं लिहाजा वे सब्सिडी के तौर पर दिए जाने वाले लाभ का एक बड़ा हिस्सा हासिल कर लेते हैं।
श्रुति शर्मा के मुताबिक इस मॉडल के अनुसार जो परिवार 800 किलोवाट प्रति माह से ज्यादा बिजली खर्च करते हैं उन्हें 50 किलो वाट से कम बिजली खपत वाले लोगों को दी जाने वाली सरकारी सब्सिडी की सहायता के मुकाबले 4 गुना ज्यादा फायदा मिलता है।
अध्ययनकर्ताओं ने यह माना कि बिजली पर दी जाने वाली सब्सिडी के असमानता पूर्ण वितरण की समस्या पूरी दुनिया में व्याप्त है और चूंकि भारत के कई अन्य राज्यों में बिजली शुल्क दरें और सब्सिडी का ढांचा झारखंड से ही मिलता जुलता है इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि देश के अन्य राज्यों में भी यह समस्या मौजूद हो। विशेषज्ञों ने इस बात को रेखांकित किया है कि ऊर्जा सब्सिडी को वास्तविक रुप से जाहिर करने के लिए सटीक आंकड़ों की कमी के कारण पूरे देश में एक बड़ा नॉलेज गैप बन चुका है। शोधकर्ताओं का मानना है कि गरीब परिवारों को बेहतर ढंग से बिजली पहुंचाने में मदद के लिए सरकार को यह अंतर खत्म करना होगा।
शोधकर्ताओं का सुझाव है के तंत्र में सुधार करने के लिए भारत के विभिन्न राज्यों के बिजली विभागों को खुशहाल परिवारों को दी जाने वाली सब्सिडी को अधिक समानतापूर्ण बनाना चाहिए और गरीब परिवारों को सब्सिडी का समुचित लाभ उपलब्ध कराने की दिशा में काम करना चाहिए। इससे गरीबों को दी जाने वाली सब्सिडी में बढ़ोत्तरी करना भी मुमकिन हो सकेगा।
झारखंड में किए गए अध्ययन के आधार पर इस रिपोर्ट में सरकारों के लिए कुछ सुनिश्चित सुझाव दिए गए हैं।
शोधकर्ताओं का सुझाव है कि कोविड-19 महामारी के नागरिकों पर पड़ने वाले असर को देखते हुए अल्पकाल में बेहद सतर्कतापूर्ण रवैया अपनाना होगा और सिर्फ उन्हीं घरों की सब्सिडी खत्म करनी होगी जो हर महीने 300 किलोवाट से ज्यादा बिजली खर्च करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अर्थव्यवस्था में सुधार की शुरुआत होने पर सरकार को 50 किलोवाट से लेकर 200 किलो वाट प्रतिमाह बिजली खर्च करने वालों वाले परिवारों को दी जाने वाली सब्सिडी में कटौती करनी चाहिए और उन उपभोक्ताओं को सब्सिडी के लाभार्थी लोगों की सूची से हटा देना चाहिए जिनके पास बीपीएल राशन कार्ड नहीं है।
इन सुधारात्मक कदमों से झारखंड की बिजली वितरण कंपनियां 306 करोड़ रुपए बचा सकती हैं। इस बचत का इस्तेमाल बिजली आपूर्ति में सुधार करने, प्रतिमाह 50 किलोवॉट से कम बिजली खर्च करने वाले गरीब परिवारों की मदद करने या फिर कोविड-19 से हुए नुकसान की भरपाई में मदद के लिए किया जा सकता है।
रिपोर्ट में भारत के अन्य राज्यों के लिए सुझाव दिया गया है कि सरकारें यह पता लगाएं कि बिजली सब्सिडी से सबसे ज्यादा फायदा किसको हो रहा है। इसके अलावा ऐसी ही अन्य लक्ष्यपूर्ण रणनीतियां अपनाकर काम करना होगा। विशेषज्ञों ने कहा कि इससे राज्य सरकारों को ऊर्जा की उपलब्धता और उसके किफायतीपन से समझौता किए बगैर सब्सिडी के ढांचे को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। इसके लिए राज्य सरकार की विभिन्न एजेंसियों के साथ मिलकर काम किया जाना चाहिए जो गरीबों की रजिस्ट्री के मामले देखती हैं ताकि नीतियों को उपभोक्ता परिवार की माली हालत को देखते हुए सटीक आंकड़ों पर आधारित बनाया जा सके।
आईआईएसडी के प्रोजेक्ट प्रमुख क्रिस्टोफर बीटन ने कहा ‘‘कोविड-19 महामारी के कारण अर्थव्यवस्था को लगे झटके का असर पूरे देश के लोगों पर पड़ा है, लिहाजा यह सवाल पहले से कहीं ज्यादा अहम हो जाता है कि क्या सरकारी मदद उसके वास्तविक हकदारों तक पहुंच रही है या नहीं, और क्या हम सही मायनों में जरूरतमंद लोगों की मदद पर ध्यान केंद्रित कर पा रहे हैं?
संपादकों के लिए नोट
झारखंड में गरीबी का पैमाना अपवंचन सूचकांक (डिप्राइवेशन इंडेक्स) पर आधारित है। इसके मुताबिक वित्तीय वर्ष 2016 में राज्य की 46.5% आबादी गरीब थी। गरीबी की इस दर और सर्वे के दायरे में लिए गए घरों के महीने के खर्च संबंधी आंकड़ों के आधार पर सबसे कम दो पंचमक (क्विनटाइल) के बराबर का हिस्सा झारखंड की आबादी के बड़े भाग को खुद में शामिल करता है। इस आबादी को राज्य सरकार की परिभाषा में गरीब के तौर पर प्रस्तुत किया गया है।